रालोद को क्या फायदा हुआ एन डी ए में जाने का
कहा जायेंगे मुसलमान
सरंजना संवाददाता
नॉएडा/पिछले एक हफ्ते से जयन्त चौधरी की पार्टी रालोद का गठबंधन एनडीए के होने की चर्चाएं सुर्खियों में थीं। लेकिन चौधरी स्व चरण सिंह जी को भारत रत्न देने की घोषणा से इन चर्चाओं पर उस समय एक तरह से विराम लग गया जब भारत रत्न से नवाजे जाने की घोषणा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए ट्वीट पर प्रतिक्रिया करते हुए जयन्त चौधरी ने लिख दिया था "दिल जीत लिया"। इसके बाद रालोद मुखिया जयंत चौधरी के मीडिया से मुखातिब होने के बाद गठबंधन की तस्वीर बिल्कुल स्पष्ट हो गई। जिसकी केवल औपचारिक घोषणा होना शेष है।
अब ऐसे में एक अहम् सवाल यह उठता है कि जो जयंत चौधरी अब तक जाट, मुस्लिम और गुर्जर गठजोड़ का समीकरण बनाकर रालोद को मजबूत करते नजर आ रहे थे तो ऐसे में क्या अब भाजपा के साथ जाने पर जयंत चौधरी मुस्लिम मतदाताओं का रुख भाजपा की तरफ मोड़ने में कामयाब हो सकेंगे ? जो कि कतई नामुमकिन नजर आ रहा है। देखा जाए तो इसी तरह अब तक रालोद मुखिया जयंत चौधरी गुर्जर समाज को भी काफी हद तक राजनीतिक तवज्जो देते नजर आ रहे थे। गुर्जर समाज को अपने साथ जोड़ने की रणनीति के तहत ही गुर्जर समाज के कद्दावर नेता मदन भैया को खतौली विधानसभा उपचुनाव मैदान में उतारा गया था। खतौली विधानसभा उपचुनाव जीतने के बाद पश्चिम बेल्ट में रालोद द्वारा लिखी गई राजनीति की नई पटकथा से मानो भाजपा की नींव हिल गई थी। अगर खतौली विधानसभा उपचुनाव के समीकरण पर नजर डालें तो खतौली उपचुनाव में जाट, गुर्जर, त्यागी, मुस्लिम और हरिजन मतदाता एक साथ आकर रालोद प्रत्याशी मदन भैया को मतदान करता नजर आया था। कई जातियों के इस गठजोड़ की बदौलत खतौली विधानसभा उपचुनाव के बाद से ही भाजपा रालोद से गठबंधन की पींगे बढ़ा रही थी। दूसरी तरफ सपा के साथ जयंत चौधरी का सीटों के बंटवारे को लेकर हुए मतभेद उभरने पर मध्यस्थ राजनीतिज्ञों द्वारा रालोद और भाजपा को एक दूसरे के निकट लाने का काम किया और भाजपा की केंद्र सरकार ने भी अपना रुझान दिखाते हुए किसानों के मसीहा स्व चौधरी चरण सिंह जी को भारतरत्न से सम्मानित करने की घोषणा कर दी ताकि रालोद और किसानों का मनमोहा जा सके। हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि चौधरी चरण सिंह जी भारत रत्न से सम्मानित होने के असल हकदार थे। इस घोषणा से जाट समाज ही नहीं बल्कि सभी किसान जातियां प्रसन्न नजर आईं ।
गठबंधन के तौर पर हुए अंदरुनी समझौते में विशेष तौर पर रालोद मुखिया और जाट समाज को खुश करने की नियत से स्व चौधरी चरण सिंह जी को भारत रत्न के रूप में दिए गए इस बड़े सम्मानजनक तोहफे के अतिरिक्त 2024 के संसदीय चुनाव के बाद केंद्र में भाजपा की सरकार बनने पर रालोद मुखिया जयन्त चौधरी का मंत्री बना भी तय माना जा रहा है। भाजपा से हुए समझौते में राज्यसभा की मिलने वाली एक सीट से जाट समाज से ही ताल्लुकात रखने वाले सोमपाल शास्त्री को राज्यसभा भेजे जाने की भी चर्चाएं आम हैं। सूत्रों के मुताबिक गठबंधन में विधान परिषद की एक सीट भी रालोद को मिलने की चर्चाएं हैं। जिस पर अभी किसी के नाम की चर्चा सुनने में नहीं आई है। रालोद और भाजपा के बीच हुए समझौते में बागपत और बिजनौर की दो लोकसभा सीट रालोद को मिलना तय मानी जा रही हैं। ऐसे में बागपत संसदीय सीट से निश्चित तौर पर जयन्त चौधरी स्वयं अथवा किसी जाट समाज के प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारेंगे तो बिजनौर सीट पर अभी रालोद प्रत्याशी का नाम भी सामने नहीं आया है।
अगर रालोद से चुनकर आए जनप्रतिनिधियों पर नजर डालें तो वर्तमान में जयन्त चौधरी सपा कोटे से राज्यसभा के सांसद हैं। इसके अतिरिक्त राजस्थान में एक विधायक और उत्तर प्रदेश में रालोद के 9 विधायक हैं। जिनमें से चार विधायक ऐसे हैं जो थे सपा के लेकिन चुनाव लड़े थे रालोद के सिंबल पर। अगर उत्तर प्रदेश के विधायकों को जातीय समीकरण के नजरिए से देखें तो इन नौ विधायकों में पुरकाजी सीट से अनिल कुमार एससी जाति से, गुलाम मोहम्मद और अशरफ अली मुस्लिम समुदाय से, मदन भैया और चंदन चौहान गुर्जर समाज से और इनके अतिरिक्त चार विधायक जाट समाज से ताल्लुकात रखते हैं। अगर वरिष्ठता की दृष्टि से देखें तो इनमें मदन भैया पांच बार और वर्तमान में रालोद विधान मंडल दल के नेता राजपाल बलियान तीन बार जीतकर विधानसभा जा चुके हैं।
अब ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार में एक मंत्री पद रालोद को दिए जाने की चर्चाएं भी सुनने को मिल रही हैं तो इससे लोगों के मन में केवल एक ही सवाल कौंध रहा है कि क्या रालोद मुखिया जयन्त चौधरी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लगभग 60 विधानसभा सीटों को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाले गुर्जर समाज का रालोद के साथ गठजोड़ बरकरार रखने के लिए उत्तर प्रदेश के मंत्रिमंडल में समायोजित कराकर गुर्जर समाज को एक अच्छा संदेश देना चाहेंगे।
क्योंकि यह अटूट सत्य है कि भाजपा के साथ गठबंधन करने पर अब मुस्लिम रालोद से पूरी तरह छिटकता नजर आ रहा है। इसके अतिरिक्त आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद और जयन्त चौधरी के बीच बढी नजदीकियों से सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और मेरठ आदि लगभग आधा दर्जन जिलों का का दलित मतदाता रालोद से लगाव मानने लगा था अब जयंत चौधरी के भाजपा के साथ जाने पर उसकी भी कोई गारंटी नहीं है। क्योंकि इन जिलों के दलित मतदाताओं में आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद का अच्छा खासा प्रभाव नजर आता है।
अगर भाजपा से हुए गठबंधन में रालोद को मिली राजनीतिक पदों की रेवड़ियां केवल एक समाज विशेष के लोगों को बांटने तक सीमित रहीं तो यह रालोद को केवल एक उस जातीय सीमा में समेटने का काम करेंगी जिस जाति में और भी कई सारे प्रभावशाली नेता हैं। ऐसे में अगर रालोद के साथ जुड़ी जातियों में मायूसी नजर आई तो भविष्य में भाजपा की नजरों में जयंत चौधरी का वजन काम होना भी संभावित नजर आता है। जो आने वाले समय में जयंत चौधरी की राजनीति के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। इसलिए जयन्त चौधरी को अपना राजनीतिक वजन बनाए रखने के लिए अन्य जातियां को भी जोड़कर रखना होगा। इसीलिए उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में रालोद को मिलने वाला मंत्री पद जयन्त चौधरी के सामने एक बहुत बड़ा यक्ष प्रश्न यह है कि वह उत्तर प्रदेश के मंत्रिमंडल में शामिल करने हेतु अपनी तरफ से किस जाति और संप्रदाय के प्रतिनिधित्व को हरी झंडी दिखाते हैं ? हां अगर उत्तर प्रदेश में रालोद को दो मंत्री पद मिलते हैं तो ऐसे में जयन्त चौधरी को निर्णय लेना शायद काफी आसान हो जाए वर्ना तो उनके अंदर के युधिष्ठिर और राजनीतिक दूरदृष्टिता के लिए यह बहुत बड़ा यक्ष प्रश्न होगा।
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